कुमॉऊँ की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा महाभारत काल से भी प्रचीन रही हैl यहां के तीज त्योहार पुरातन काल से मनाए जा रहे हैंl उनको मनाने का कारण और परंपरा किवंदंतियां भर ही रह गई हैं उनको मनाने के पीछे क्या कारण रहे होंगे ये कोई नहीं जानताl आइये कोशिश करते हैं कुछ तथ्यों को समझने की
भारतीय संस्कृति में काग का महत्व:-
भारतीय संस्कृति में काग को बहुत महत्व दिया गया हैl कभी काग प्रभु श्री राम के हाथों से माखन मिश्री पाता है तो कभी काग भुशुंडी बन गरुड़ राज को रामायण सुनाता हैl काग को भारतीय संस्कृति मे बहुत शुभ पक्षी माना गया है, घर की मुंडेर पर कभी काग बोले तो घर पर मेहमानों के आगमन का शुभ संदेशा भी यही लाता हैl
काले कौआ काले घुघुती माला खा ले….
काग हमारी सामाजिक संस्कृति में काफी रचे बसे हैं, श्राद्ध भोज में भी कौव्वे का भाग पहले ही अलग रखा जाता है, ऐसा माना जाता है कि काग ऊँचाई पर उड़ कर हमारे पितृों को श्राद्ध का भोजन पहुंचा देते हैं, मकर संक्रांति पर्व पर घुघुती का त्योहार मनाने के पीछे भी संभवतः यही सोच रही होगी, घुघुती की माला में पिरोये जाने वाले तलवार,ढाल और डमरू आदि से यही लगता है कि यह त्योहार काफी प्राचीन काल से ही मनाया जाता रहा है और संभवतः प्राचीन काल में यह त्योहार अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने केे लिए ही मनाया जाता रहा होगाl
घुघुती त्यार मनाने के पीछे एक प्रचलित कहानी:-
बात उन दिनों की है जब कुमाऊँ में चन्द्र वंश का राज हुआ करता था. उस समय के चन्द्रवंशीय राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी, जो उसकी उत्तराधिकारी बनती. इस वजह से उसका मंत्री सोचता था कि राजा की मृत्यु के बाद वही अगला शासक बनेगा. एक बार राजा कल्याण चंद रानी के साथ बाघनाथ मन्दिर गए और पूजा-अर्चना कर संतान प्राप्ति की कामना की.
बाघनाथ की अनुकम्पा से जल्द ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. पुत्र का नाम निर्भय चंद रखा गया. निर्भय को उसकी माँ लाड़ से घुघुति (Local name of Dove) के नाम से बुलाया करती. घुघुति के गले में मोतियों की एक माला सजी रहती, इस माला में घुंघरू लगे हुए थे. जब माला से घुंघरुओं की छनक निकलती तो घुघुती खुश हो जाता था.
घुघुती जब किसी बात पर अनायास जिद्द करता तो उसकी माँ उसे धमकी देती कि वे माला कौवे को दे देंगी. वह पुकार लगाती कि ‘काले कौवा काले घुघुति माला खाले’ पुकार सुनकर कई बार कौवा आ भी जाता. उसे देखकर घुघुति अपनी जिद छोड़ देता. जब माँ के बुलाने पर कौवे आ ही जाते तो वह उनको कोई न कोई चीज खाने को दे देती. धीरे-धीरे घुघुति की इन कौवों के साथ अच्छी दोस्ती हो गई.
उधर मंत्री जो राज-पाट की उम्मीद में था, घुघुति की हत्या का षड्यंत्र रचने लगा. मंत्री ने अपने कुछ दरबारियों को भी इस षडयंत्र में शामिल कर लिया. एक दिन जब घुघुति खेल रहा था तो उन्होंने उसका अपहरण कर लिया. वे घुघुति को जंगल की ओर ले जाने लगे. रास्ते में एक कौवे ने उन्हें देख लिया और काँव-काँव करने लगा. पहचानी हुई आवाज सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा. उसने अपनी माला हाथ में पकड़कर उन्हें दिखाई.
धीरे-धीरे जंगल के सभी कौवे अपने दोस्त की रक्षा के लिए इकट्ठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों के ऊपर मंडराने लगे. मौका देखकर एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपट कर ले उड़ा. सभी कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर अपनी चोंच व पंजों से जोरदार हमला बोल दिया. इस हमले से घबराकर मंत्री और उसके साथी भाग खड़े हुए. घुघुति जंगल में अकेला एक पेड़ के नीचे बैठ गया. सभी कौवे उसी पेड़ में बैठकर उसकी सुरक्षा में लग गए.
इसी बीच हार लेकर गया कौवा सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांग कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा. जब सभी की नजरें उस पर पड़ी तो उसने माला घुघुति की माँ के सामने डाल दी. माला डालकर कौवा एक डाल से दूसरी डाल में उड़ने लगा. माला पहचानकर सभी ने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जानता है और कहना चाहता है. राजा और उसके घुड़सवार सैनिक कौवे के पीछे दौड़ने लगे.
कुछ दूर जाने के बाद कौवा एक पेड़ पर बैठ गया. राजा और सैनिकों ने देखा कि पेड़ के नीचे घुघुती सोया हुआ है. वे सभी घुघुती को लेकर राजमहल लौट आये. घुघुती के घर लौटने पर जैसे रानी के प्राण लौट आए. माँ ने घुघुति की माला दिखा कर कहा कि इस माला की वजह से ही आज घुघुती की जान बच गयी. राजा ने मंत्री और षड्यंत्रकारी दरबारियों को गिरफ्तार कर मृत्यु दंड दे दिया.
घुघुति के सकुशल लौट आने की ख़ुशी में उसकी माँ ने ढेर सारे पकवान बनाए और घुघुति से ये पकवान अपने दोस्त कौवों को खिलाने को कहा. घुघुति ने अपने सभी दोस्त कौवों को बुलाकर पकवान खिलाए. राज परिवार की बात थी तो तेजी से सारे राज्य में फैल गई और इसने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया. तब से हर साल इस दिन धूमधाम से यह त्यौहार मनाया जाता है. तभी से उत्तरायणी के पर्व पर कौवों को बुलाकर पकवान खिलाने की परंपरा चली आ रही है.

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