कमाल की बात है एक 19 साल की लड़की के साथ चार लोग दरिंदगी करते है, उसकी रीड की हड्डी तक तोड़ दी जाती है जीभ काट दी जाती है, 30/09/2020 सुबह दुखद समाचार मिला कि मनीषा ने जिन्दगी और मौत के बीच लड़ते हुए आज सुबह दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल मे आखिरी साँस ली। समझ नही आता है कि इतनी दर्दनाक घटना के घटित होने के पश्चात भी ये शोर मचाने वाली मीडिया इतनी खामोश क्यो है?
👉क्या मीडिया की नजर में किसी महिला के साथ रेप होना व उसकी हत्या कर देना कोई अहम मुद्दा नही हैं??? जिसके प्रति वो आवाज उठाना तो बहुत दूर की बात है, उल्टा उस विषय को दबाने का प्रयास किया जा रहा है।
👉असल समस्या ये नहीं है कि अपराध घटित नही हुआ है, मुद्दा ये है कि वो अपराध घटित किस के साथ हुआ है मूल समस्या मनीषा का एक महिला होना नही एक दलित होना व उसकी जाति भी है, हमारे समाज में कुछ बुधिजिवीयो का कहना है कि जाति खत्म हो गई है जी जरुर जातिवाद नही होता ये कहने में आखिर समय ही कितना लगता है, फिर निरंतर इस प्रकार की दर्दनाक घटनाएँ सामने आती है और उन बुद्धिजीवी वर्ग के पास कुछ नही होता है कहने को, परंतु हम जवाब की माँग करते है कि वो इन सब घटनाओं को किस श्रेणी के अन्तर्गत लेते है जो उनके समाज में घटित हो तो वो न्याय की माँग करते है, कैंडल मार्च करते है और उनको न्याय मिल भी जता है परंतु एक दलित कि महिला के साथ हुए शोषण पर न्याय की माँग करना तो दूर वो मौन धारण कर लेते है, आखिर हम महिलाओं को व उनके न्याय को जाति में कैसे विभाजित कर देते है मेरी समझ कहती है कि महिला किसी भी जाति की क्यो ना हो उसके साथ हुआ दुष्कर्म सहनीय नही होना चाहिए व न्याय भी बराबरी का होना चाहिए ।
👉मुझे समझ नहीं आता है कि हम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बहुत लम्बी लम्बी बाते करते है परंतु मेरा सवाल ये है कि हमारी बेटी आखिर सुरक्षित कितनी है इस समाज में, जब वो सुरक्षित ही नही रहेगी तो पढ़ेगी कैसें ??? या सिर्फ ये सारी बातें कहने भर के लिए है ।
👉कभी- कभी लगता है कि आखिर लड़कियाँ पैदा ही क्यो होती है, ऐसे हैवानो के द्वारा दी गई दर्दनाक मौत से तो बेहतर है कि लड़कियाँ पैदा ही ना हो, अगर हम उनको एक सुरक्षित माहौल भी नहीं दे सकते है इससे बुरी बात और क्या होगी कि समाज का अहम हिस्सा हमारी महिलायें ड़र में जी रही है और हम उन्नतिशील होने का डंका बजा रहे हैं ।
#justice_for_Manisha