कालीचौड़ गौलापार में स्थित काली माता का प्रसिद्ध मंदिर हैं। यह मंदिर काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 4 किमी की दूरी पर कालीचौड़ में स्थित हैं। इसके लिए काठगोदाम गौलापार रास्ते पर खेड़ा सुल्तानपुरी से एक पैदल रास्ता जाता है।
खेड़ा सुल्तानपुरी से कुछ देर चलने के बाद जंगल और पहाड़ों से निकली छोटी छोटी झीलों से होता हुआ एक कच्चा रास्ता मंदिर के द्वार तक ले जाता हैं।
इस मंदिर का इतिहास ये है कि वर्ष 1942 से पहले कलकत्ता में माता ने एक भक्त के स्वप्न में आकर दर्शन दिए तथा उस जगह की जानकारी दी। फिर उस भक्त ने हल्द्वानी आकर अपने मित्र राजकुमार चुड़ीवाले को सपने के बारे में बताया। उसके बाद दोनों मित्र गौलापार पहुंचकर भक्तजनों के साथ गौलापार के जंगल में गए और मंदिर को खोजने लग गए।
वहां पहुंचकर उन्होंने पेड़ से लगी हुई काली मां की मूर्ति व शिव लिंग के दर्शन किए और वहां पर काली मां का मंदिर बनाया। उसी जगह काली मां की मूर्ति के साथ दर्जनों मूर्तियां धरती से निकलीं।
यह एक तरह से आध्यात्मिक स्थान भी है क्योंकि गुरु शंकराचार्य उत्तराखंड आगमन के दौरान यहां सबसे पहले आए और यहां उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ तथा इसके बाद वे यहां से जागेश्वर और गंगोलीहाट गए।
यहां एक चमत्कार भी हुआ। लगभग 3 दशक पहले किच्छा में एक सिख परिवार ने अपने मृत बच्चे को लाकर मां काली के दरबार में रख दिया और कहा की माता रानी मै अपने बच्चे को आपके द्वार मे लाई हूं ,अब जो करना है आपको ही करना हैं , तभी वह बालक ठीक हो गया । तभी से वह परिवार हर वर्ष नवरात्रि और शिवरात्रि में भंडारे का आयोजन कराते हैं।
आज इस मंदिर में भक्तजनों का आना जाना लगा रहता है तथा शिवरात्रि और नवरात्रि के अवसरों में यहां भक्तों की माता के दर्शन के लिए विशााल भीड़ लगती है। और बड़े भंडारे का आयोजन किया जाता है।
यहां सच्चे मन से आस्था रखने वालो की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
आभार: uttarapedia.com
आलेख: आदर्श गुप्ता

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