उत्तराखंड:- कभी नशे के लिए बदनाम रहा भांग पहाड़ में रोजगार का जरिया बन रहा है। इसके रेशों से शानदार उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। जिससे हस्तशिल्प को बढ़ावा मिल रहा है। प्रदेश में कई जगह भांग की खेती के लिए लाइसेंस भी जारी कर दिए गए।
अब भांग से बनी दवाओं को संयुक्त राष्ट्र ने भी मान्यता दे दी है। संयुक्त राष्ट्र के नारकोटिक्स औषधि आयोग ने भांग को दवा के तौर पर ना सिर्फ स्वीकारा है, संयुक्त राष्ट्र के नारकोटिक्स औषधि आयोग की सूची-4 में सख्त पाबंदियों वाले मादक पदार्थों को शामिल किया गया है।
इस लिस्ट में अफीम और हेरोइन जैसे पदार्थ शामिल हैं। पहले भांग को भी इसी लिस्ट में रखा गया था, लेकिन अब भांग कम खतरनाक मानी जाने वाली लिस्ट में रहेगा।
संयुक्त राष्ट्र में इसे लेकर एक ऐतिहासिक मतदान हुआ। जिसके बाद इसे एक दवा के रूप में मान्यता दे दी गई। भांग को प्रतिबंधित मादक पदार्थों की लिस्ट से निकाले जाने के लिए यूएन ने मतदान कराया था।
इस मतदान के पक्ष में 27 देशों ने और 25 सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया। अमेरिका और ज्यादातर यूरोपीय देश भी भांग को पाबंदियों की सख्त सूची से हटाने के पक्षधर रहे। जबकि चीन, नाइजीरिया, पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने इसके खिलाफ वोट डाला।
भांग को भले ही सूची-4 से हटा लिया गया है, लेकिन यूएन के कानून के अनुसार इसे अब भी गैर मेडिकल इस्तेमाल के तौर पर एक प्रतिबंधित ड्रग ही माना जाएगा।
आपको बता दें कि साल 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भांग और इसके रस को 1961 में बनी प्रतिबंधित मादक पदार्थों की चौथी सूची से हटाने की सिफारिश की थी।
क्योंकि भांग का इस्तेमाल कई दर्द निवारक दवाओं में हो रहा है। वोटिंग के बाद भांग को लिस्ट-4 से हटा लिया गया। फिलहाल 50 से अधिक देशों ने भांग की मेडिकल वैल्यू को समझते हुए इसे किसी ना किसी स्तर पर वैध किया है।
यूएन के इस फैसले के बाद भांग से बनी दवाओं के इस्तेमाल में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। इसके अलावा भांग को लेकर साइंटिफिक रिसर्च को भी बढ़ावा मिलेगा।
भांग में कई औषधीय गुण हैं, आयुर्वेद में भी इसका जिक्र मिलता है। बात करें उत्तराखंड की तो यहां पौड़ी गढ़वाल के अलावा सीमांत जिले चंपावत में भी कानूनी तौर पर भांग की खेती शुरू की गई है।